Utejna Sahas Aur Romanch Ke Vo Din – Ep 22

This story is part of the Utejna Sahas Aur Romanch Ke Vo Din series

    अनायास ही सुनीता अपने पति के लण्ड के साथ जस्सूजी के लण्ड की तुलना करने लगी। सुनीलजी का लण्ड काफी लंबा और मोटा था और जब तक सुनीता ने जस्सूजी का लण्ड नहीं महसुस किया था तब तक तो वह यही समझ रही थी की अपने पति सुनीलजी के लण्ड जितना लंबा और मोटा शायद ही किसी मर्द का लण्ड होगा।

    पर जस्सूजी का लण्ड देखने के बाद उसकी गलतफहमी दूर हो गयी थी। हो सकता है की जस्सूजी के लण्ड से भी लंबा और मोटा किसी और मर्द का लण्ड हो।

    लेकिन सुनीता यह समझ गयी थी की किसी भी औरत की पूर्णतयः कामुक संतुष्टि के लिए के लिए जस्सूजी का लण्ड ना सिर्फ काफी होगा बल्कि शुरू शुरू में काफी कष्टसम भी हो सकता है। यही बात ज्योतिजी ने भी तो सुनीता को कही थी।

    अपनी कामुकता को छिपाते हुए स्त्री सुलभ लज्जा के नखरे दिखाते हुए सुनीता ने अपने पति के लण्ड को हिलाना शुरू किया और बोली, “देखो जानू! मुझसे यह सब मत करवाओ। मुझे तुम अपनी ही रहने दो। तुम जो सोच रहे या कह रहे हो ऐसा सोचने से या करने से गड़बड़ हो सकती है। तुम जस्सूजी को तो भली भांति जानते हो ना? तुम्हें तो पता है, उस दिन सिनेमा हॉल में क्या हुआ था?

    तुम्हारे जस्सूजी कितने उत्तेजित हो गए थे और मेरे साथ क्या क्या करने की कोशिश कर रहे थे और मैं भी उन्हें रोक नहीं पा रही थी? वह तो अच्छा था की हम सब इतने बड़े हॉल में सब की नज़रों में थे…

    वरना पता नहीं क्या हो जाता? हाँ मैं यह जानती हूँ की तुम ज्योतिजी पर बड़ी लाइन मार रहे हो और उन्हें अपने चंगुल में फाँसने की कोशिश कर रहे हो। तो मैं तुम्हें पूरी छूट देती हूँ की यदि उन दोनों को इसमें कोई आपत्ति नहीं है तो तुम खूब उनके साथ घूमो फिरो और जो चाहे करो। मुझे उसमें कोई आपत्ति नहीं है।”

    सुनीता की धड़कन तेज हो गयी थीं। वह अपने पति के ऊपर चढ़ गयी। उनके होँठों पर अपने होँठ रख कर सुनीता उनको गहरा चुम्बन करने लगी। सुनीता का अपने आप पर काबू नहीं रख पा रही थी।

    पर सुनीता को आखिर अपने आप पर नियत्रण तो रखना ही पडेगा। उसने अपने आपको सम्हालते हुए कहा, “जहां तक जस्सूजी का ऋण चुकाने का सवाल है तो जैसे आप कहते हो अगर ज्योतिजी को एतराज नहीं हो तो मैं जस्सूजी का पूरा साथ दूंगी, पर तुम मुझसे यह उम्मीद मत रखना की मैं उससे कुछ ज्यादा आगे बढ़ पाउंगी। तुम मेरी मँशा और मज़बूरी भली भाँती जानते हो।”

    सुनील ने निराशा भरे स्वर में कहा, “हाँ मैं जानता हूँ की तुम अपनी माँ से वचनबद्ध हो की तुम सिर्फ उसीको अपना सर्वस्व अर्पण करोगी जो तुम पर जान न्योछावर करता है। खैर तुम उन्हें कंपनी तो दे ही सकती हो ना?”

    सुनीता ने अपने पति की नाक, कपाल और बालों को चुम्बन करते हुए कहा, अरे भाई कंपनी क्या होती है? हम सब साथ में ही तो होंगे ना? तो फिर मैं उन्हें कैसे कंपनी दूंगी? कंपनी देने का तो सवाल तब होता है ना अगर वह अकेले हों?”

    सुनील ने अपनी पत्नी के मदमस्त कूल्हों पर अपनी हथेली फेरते हुए और उसकी गाँड़ के गालोँ को अपनी उँगलियों से दबाते हुए कहा, “अरे मेरी बुद्धू बीबी, मेरे कहने का मतलब है दिन में या इधर उधर घूमते हुए, जब हम सब अलग हों या साथ में भी हों तब भी तुम जस्सूजी के साथ रहना , मैं ज्योतिजी के साथ रहूंगा। हम हमारा क्रम बदल देंगे। रात में तो फिर हम पति पत्नी रोज की तरह एक साथ हो ही जाएंगे ना? इसमें तुम्हें कोई आपत्ति तो नहीं?”

    सुनीता ने टेढ़ी नजरों से अपने पति की और देखा और शरारत भरी आँखें नचाते हुए पूछा, “क्यों मियाँ? रात को क्या जरुरत है अपनी बीबी के पास आने की? रात को भी अपनी ज्योति के साथ ही रहना ना?”

    सुनीलजी ने भी उसी लहजे में जवाब देते हुए कहा, “अच्छा, मेरी प्यारी बीबी? रात में तुम मुझे ज्योतिजी के साथ रहने के लिए कह कर कहीं तुम अपने जस्सूजी के साथ रात गुजारने का प्लान तो नहीं बना रही हो?”

    अपने पति की वही शरारत भरी मुस्कान और करारा जवाब मिलने पर सुनीता कुछ झेंप सी गयी। उसके गाल शर्म से लाल हो गए। अपनी उलझन और शर्मिंदगी छिपाते हुए सुनील की कमर में एक हल्काफुल्का नकली घूँसा मारती हुई अपनी आँखें निचीं करते हुए…

    सुनीता बोली, “क्या बकते हो? मेरा कहने का मतलब ऐसा नहीं था। खैर, मजाक अपनी जगह है। मुझे जस्सूजी को कंपनी देने में क्या आपत्ति हो सकती है? मुझे भी उनके साथ रहना, घूमना फिरना, बातें करना अच्छा लगता है। आप जैसा कहें। मैं जरूर जस्सूजी को कंपनी दूंगी। पर रात में मैं तुम्हारे साथ ही रहूंगी हाँ!”

    सुनीलजी ने अपनी बीबी सुनीता को अपनी बाँहों में भरते हुए सुनीता का गाउन दोनों हाथों में पकड़ा और कहा, “अरे भाई, वह तो तुम रहोगी ही। मैं भी तो तुम्हारे बगैर अपनी रातें उन वादियों में कैसे गुजारूंगा? मुझसे तो तुम्हारे बगैर एक रात भी गुजर नहीं सकती।”

    सुनीता ने अपने पति को उलाहना देते हुए कहा, “अरे छोडो भी! तुम्हें मेरी फ़िक्र कहाँ? तुम्हें तो दिन और रात ज्योतिजी ही नजर आ रही है। भला उस सुंदरी के सामने तुम्हारी सीधी सादी बीबी कहाँ तुम्हें आकर्षक लगेगी?”

    सुनील ने शरारत भरे लहजे में अपने पति के लण्ड की और इशारा करते हुए कहा, “अच्छा? तो यह जनाब वैसे ही थोड़े अटेंशन में खड़े हैं?”

    सुनीता ने अपने पति की नाक पकड़ी और कहा, “क्या पता? यह जनाब मुझे देख कर या फिर कोई दूसरी प्यारी सखी की याद को ताजा कर अल्लड मस्त हो कर उछल रहे हैं।”

    सुनीता की शरारत भरी और सेक्सी बातें और अदा के साथ अपनी बीबी की कोमल उँगलियों से सेहलवाने के कारण सुनील का लण्ड खड़ा हो गया था। उसके छिद्र में से उसका पूर्वरस स्राव करने लगा। सुनील ने दोनों हाथोँ से सुनीता का गाउन ऊपर उठाया।

    सुनीता ने अपने हाथ ऊपर उठा कर अपना गाउन अपने पति सुनील को निकाल फेंकने दिया। सुनीता ने उस रात गाउन के निचे कुछ भी नहीं पहना था। उसे पता था की उस रात उसकी अच्छी खासी चुदाई होने वाली थी।

    अपने पति का कड़क लण्ड अपने हाथों में हिलाते हुए पति के कुर्ता पयजामे की और ऊँगली दिखाते हुए कहा, “तुम भी तो अपना यह परिवेश उतारो ना? मैं गरम हो रही हूँ।”

    सुनील अपनी कमसिन बीबी के करारे फुले हुए स्तनों को, उसके ऊपर बिखरे हुए दाने सामान उभरी हुई फुंसियों से मण्डित चॉकलेटी रंगकी एरोला के बीचो बिच गुलाबी रंग की फूली हुई निप्पलोँ को दबाने और मसलने का अद्भुत आनंद ले रहे थे।

    अपना दुसरा हाथ सुनील ने अपनी बीबी की चूत पर हलके हलके फिराते हुए कहा, “गरम तो तुम हो रही हो। यह मेरी उँगलियाँ महसूस कर रहीं हैं। यह गर्मी किसके कारण और किसके लिए है?”

    सुनीता बेचारी कुछ समझी नहीं या फिर ना समझने का दिखावा करती हुई बोली, “मैं भी तो यही कह रही हूँ, तुम अब बातें ना करो, चलो चढ़ जाओ और जल्दी चोदो। हमारे पास पूरी रात नहीं है। कल सुबह जल्दी उठना है और निकलना है।”

    सुनीता पति का लण्ड फुर्ती से हिलाने लगी। उसकी जरुरत ही नहीं थी। क्यूंकि सुनील का लण्ड पहले ही फूल कर खड़ा हो चुका था।

    जैसे ही सुनील ने अपनी दो उंगलियां अपनी बीबी सुनीता की चूत में डालीं तो सुनीता का पूरा बदन मचल उठा। सुनील अपनी बीबी की चूत की सबसे ज्यादा संवेदनशील त्वचा को अपनी उँगलियों से इतने प्यार और दक्षता से दबा और मसला रहे थे की सुनीता बिन चाहे ही अपनी गाँड़ बिस्तरे पर रगड़ ने लगी। सुनीता ने मुंह से कामुक सिसकारियां निकलने लगीं।

    सुबह जस्सूजी से हुआ शारीरिक आधा अधूरा प्यार भी सुनीता को याद आनेसे पागल करने के लिए काफी था। उस पर अपने पति से सतत जस्सूजी की बातें सुन कर उसकी उत्तेजना रुकने का नाम नहीं ले रही थी। सुनीता अब सारी लज्जा की मर्यादा लाँघ चुकी थी।

    सुनीता ने अपने पति का चेहरा अपने दोनों हाथों में पकड़ा और उसे अपने स्तनों पर रगड़ते हुए बोली, “सुनील, मुझे ज्यादा परेशान मत करो। प्लीज मुझे चोदो। अपना लण्ड जल्दी ही डालो और उसे मेरी चूत में खूब रगड़ो। प्लीज जल्दी करो।”

    सुनील भी तो अपनी पत्नी को चोदने के लिए पागल हो रहा था। सुनील ने झट से अपना पयजामा और कुरता निकाल फेंका और फुर्ती से अपनी बीबी की टाँगें चौड़ी कर के उसके बिच में अपनी बीबी की प्यारी छोटी सी चूत को बड़े प्यार से निहारने लगा।

    सालों की चुदाई के बावजूद भी सुनीता की चूत का छिद्र वैसा ही छोटा सा था। उसे चोद कर सुनील को जो अद्भुत आनंद आता था वह वही जानता था।

    सुनीता को जब सुनील चोदता था तो पता नहीं कैसे सुनीता अपनी चूत की दीवारों को इतना सिकुड़ लेती थी की सुनील को ऐसा लगता था जैसे उसका लण्ड सुनीता की चूत में से बाहर ही नहीं निकल पायेगा।

    सुनीता की चूत चुदवाते समय अंदर से ऐसी गजब की फड़कती थी की सुनील ने कभी किसी और औरत की चूत में उसे चोदते समय ऐसी फड़कन नहीं महसूस की थी।

    सुनील के मन की इच्छा थी की जो आनंद वह अनुभव कर रहा था उस आनंद को कभी ना कभी जस्सूजी भी अनुभव करें। पर सुनील यह भी जानता था की उसकी बीबी सुनीता अपने इरादों में पक्की थी।

    वह कभी भी किसी भी हालत में जस्सूजी या किसी और को अपनी चूत में लण्ड घुसा ने की इजाजत नहीं देगी। इस जनम में तो नहीं ही देगी।

    सुनील ने फिर सोचा, क्या पता उस बर्फीले और रोमांटिक माहौल में और उन खूबसूरत वादियों में शायद सुनीता को जस्सूजी पर तरस ही आ जाये और अपनी माँ को दिया हुआ वचन भूल कर वह जस्सूजी को उसे चोदने की इजाजत देदे। पर यब सब एक दिलासा ही था।

    सुनीता वाकई में एक जिद्दी राजपूतानी थी। सुनील यह अच्छी तरह जानता था। सुनीता जस्सूजी के लिए कुछ भी कर सकती थी पर उन्हें अपनी चूत में लण्ड नहीं डालने देगी।

    बस जस्सूजी का लण्ड सुनीता की चूत में डलवाने का एक ही तरिका था और वह था सुनीता को धोखेमें रख कर उसे चुदवाये। जैसे: उसे नशीला पदार्थ खिला कर या शराब के नशे में टुन्न कर या फिर घने अँधेरे में धोखे से सुनीता को सुनील पहले खुद चोदे और फिर धीरे से जस्सूजी को सुनीता की टांगों के बिच ले जाकर उनका लण्ड अपनी पत्नी की चूत में डलवाये।

    सुनीता जस्सूजी को अपना पति समझ कर चुदवाये तब तो शायद यह हो सकता था। पर ऐसा करना बड़ा ही खतरनाक हो सकता था। सुनीता जस्सूजी का लण्ड को महसूस कर शायद समझ भी जाए की वह उसके पति का लण्ड नहीं है। सुनील कतई भी इसके पक्ष में नहीं था और वह ऐसा सोचने के लिए भी अपने आपको कोसने लगा।

    खैर, जस्सूजी से अपनी बीबी सुनीता को चुदवाने की बात सोचकर सुनील का लण्ड भी फुफकारने लगा। सुनील ने फिर एक नजर अपनी बीबी सुनीता की चूत को देखा और धीरे से अपना लण्ड सुनीता की दोनों टांगों के बिच रखा और हलके हलके उसे उसकी सतह पर रगड़ने लगा।

    सालों के बाद भी सुनील अपनी बीबी की चूत का कायल था। पर वह यह भी जानता था की सुनीता की चूत में पहली बार लण्ड डालते समय उसे काफी सावधानी रखनी पड़ती थी।

    चूत का छिद्र छोटा होने के कारण लण्ड को पहेली बार चूत में घुसाते समय उसे अपने पूर्व रस को लण्ड पर अच्छी तरह लपेट कर उसे स्निग्ध बना कर फिर धीरे धीरे सुनीता के प्रेम छिद्र में घुसाना और फिर सुनीता की चूत की सुरंग में उसे आगे बढ़ाना था। थोड़ी सी भी जल्दी सुनीता को काफी दर्द दे सकती थी।

    अपने पति सुनील की उलझन सुनीता देख रही थी। सुनीता ने प्यार से अपने पति का लण्ड अपनी उँगलियों में पकड़ा और खुद ही उसे अपनी चूत की होठोँ पर हलके से रगड़ कर उन्हें थोड़ा खोल कर लण्ड के लिए जगह बनायी और अपने पति का लण्ड अपनी चूत में घुसेड़ कर अपने पति को इंगित किया की वह अब धीरे धीरे उसे अंदर घुसेड़े और और उसे चोदना शुरू करे।

    सुनीलजी ने अपना लण्ड घुसेड़ कर हलके हलके धक्का देकर अपनी बीबी को चोदना शुरू किया। शुरुआत का थोड़ा मीठा दर्द महसूस कर सुनीता के मुंह से हलकी सिसकारियां निकलने लगीं।

    धीरे धीरे सुनीलजी ने अपनी पत्नी सुनता को चोदने के गति तेज की। सुनीता भी साथ साथ अपना पेडू ऊपर की और उठाकर अपने पति को चोदने में सहायता करने लगी।

    सुनीता की चूत स्निग्धता से भरी हुई थी और इस कारण उसे ज्यादा दर्द नहीं हुआ। सुनील जी को अपनी बीबी को चोदे हुए कुछ दिन हुए थे और इस लिए वह बड़े मूड़ में थे।

    सुनीलजी और उनकी बीबी सुनीता के बिच में हुए जस्सूजी के वार्तालाप के कारण दोनों पति पत्नी काफी गरम थे। सुनीता अपने मन में सोच रही थी की उसकी चूत में अगर उस समय जस्सूजी का लण्ड होता तो शायद उसकी तो चूत फट ही जाती।

    सुनील जोर शोर से अपनी बीबी की चूत में अपना लण्ड पेल रहा था। सुनीता भी अपने पति को पूरा साथ दे कर उन्हें, “जोर से…. और डालो, मजा आ गया….” इत्यादि शब्दों से प्रोत्साहित कर रही थी।

    सुनीलजी की जाँघें सुनीता की जाँघों के बिच टकरा कर “फच्च फच्च” आवाज कर रही थीं। सुनीलजी का अंडकोष सुनीता की गाँड़ को जोर से टक्कर मार रहा था।

    सुनीता कभी कभी अपने पति का अंडकोष अपने हाथों की उँगलियों में पकड़ कर सहलाती रहती थी जिसके कारण सुनील का उन्माद और भी बढ़ जाता था।

    अपनी बीबी को चोदते हुए हाँफते हुए सुनीलजी ने कहा, “डार्लिंग, हम यहां एक दूसरे से प्यार कर रहे हैं, पर बेचारे जस्सूजी इतनी रात गए अपने दफ्तर में लगे हुए हैं।”

    सुनीताने अपने पति की बात सुनकर अपनी जिज्ञासा को दबाने की कोशिश करते हुए पूछा, “क्यों? ऐसा क्या हुआ? जस्सूजी इस समय अपने दफ्तर में क्यों है?”

    सुनील ने कहा, “हमारे देश पर पडोशी देश की नजरें ठीक नहीं है। देश की सेना इस वक्त वॉर अलर्ट पर है। पाकिस्तानी जासूस भारतीय सेना की गतिविधियां जानने के लिए कुछ भी कर सकते हैं। मुझे डर था की ऐसी परस्थितियों में कहीं हमारा यह प्रोग्राम आखिरी वक्त में रद्द ना हो जाए।”

    यह सुन कर सुनीता को एक झटका सा लगा। सुनीता को उस एक हफ्ते में जस्सूजी के करीब रहने का एके सुनहरा मौक़ा मिल रहा था। अगर वह ट्रिप कैंसल हो गयी तो यह मौक़ा छूट जाएगा, यह डर उसे सताने लगा। अपने पति को चुदाई में रोकते हुए सुनीता ने पूछा, “क्या ऐसा भी हो सकता है?”

    सुनील जी ने अपना लण्ड अपनी बीबी सुनीता की चूत में ही रखते हुए कहा, “ऐसा होने की संभावना नहीं हैं क्यूंकि अगर कैंसिल होना होता तो अब तक हो जाता। दूसरे मुझे नहीं लगता की अभी लड़ाई का पूरा माहौल है…

    शायद दोनों देश एक दुसरेकी तैयारी का जायजा ले रहें हैं। पर सरहद की दोनों पार जासूसी बढ़ गयी है। एक दूसरे की सेना की हलचल जानने के लिए दोनों देश के अधिकारी कोई कसर नहीं छोड़ रहे…

    सुरक्षा पत्रकार होने के नाते मुझे भी मिनिस्ट्री में बुलाया गया था। चूँकि हमारे सूत्रों से मुझे सेना की हलचल के बारे में काफी कुछ पता होता है इस लिए मुझे हिदायत दी गयी है की सेना की हलचल के बारे में मैं जो कुछ भी जानता हूँ उसे प्रकाशित ना करूँ और नाही किसीसे शेयर करूँ।”

    यह सुनकर की उनका प्रोग्राम कैंसिल नहीं होगा, सुनीता की जान में जान आयी। सुनीता उस कार्यक्रम को जस्सूजी से करीब आने का मौक़ा मिलने के अलावा पहाड़ो में ट्रैकिंग, नदियों में नहाना, सुन्दर वादियों में घूमना, जंगल में रात को कैंप फायर जला कर उस आग के इर्द गिर्द बैठ कर नाचना, गाना, ड्रिंक करना, खाना इत्यादि रोमांचक कार्यक्रम को मिस करना नहीं चाहती थी।

    सुनीता ने अपने पति को चुदाई जारी करने के लिए अपना पेडू ऊपर उठा कर संकेत दिया। सुनीलजी ने भी अपना लण्ड फिर से सुनीता की चूत में पेलना शुरू किया। दोनों पति पत्नी कामुकता की आग में जल रहे थे।

    अगले सात दिन कैसे होंगें उसकी कल्पना दोनों अपने अपने तरीके से कर रहे थे। सुनीता जस्सूजी के बारे में सोच रही थी और सुनीलजी ज्योति के बारे में।

    अब आगे आने वाले ट्रिप पर क्या होने वाला है, ये तो समय के साथ साथ आपको पता चल ही जायेगा.. तो बने रहिये देसी कहानी के साथ!

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