Mere Pati Ko Meri Khuli Chunoti – Episode 12

This story is part of the Mere Pati Ko Meri Khuli Chunoti series

    कॉफी आर्डर करने के बाद मैं योग से मेरे तीखे रवैय्ये के बारे में माफ़ी मांगने लगी.

    तो योग ने अपने हाथों को घुमा कर कहा, “यह सब फ़ालतू बात छोडो, बोलो तुम्हें क्या चाहिए?”

    मैंने कहा मुझे इनकी मदद चाहिए और फिर मैंने उन्हें वह सब कहा जो उनको मैं पहले भी बता चुकी थी।

    बीच में ही मेरी बात को काटकर वह बोले, “पर मैं आपकी मदद क्यों करूँ?”

    मुझे पता था की उनका जवाब यही होगा। तब मैंने उन्हें कहा की कंपनी के लिए यह प्रोग्राम बड़ा ही जरुरी है, जिसमें मुझे उनका सहयोग चाहिए।

    योग ने बड़े ही रूखे अंदाज में कहा, “आपको वाईस प्रेजिडेंट के पास जाने के लिए मैं पहले ही कहा था। वह मेरे भी बॉस हैं। अगर वह कहेंगे तो मुझे आपका काम करना ही पडेगा। आखिर में आपने अभी अभी कहा की आपका काम कंपनी के फायदे में है। तो फिर आप उनके पास क्यों नहीं जाती?”

    हालांकि मैं जानती थी योग यह सब कहेंगे, पर फिर भी मेरी धीरज जवाब दे रही थी। मैं गुस्से हो रही थी। तब मुझे ख्याल आया की उस प्रोग्राम के पीछे ना सिर्फ मेरी परन्तु मेरे साथीदारों की करियर भी दाँव पर लगी थी। वह सब मुझ से यह उम्मीद कर रहे थे की जैसे तैसे मैं इस प्रोग्राम को लॉन्च करवा सकूँ, क्यूंकि उसकी सफलता पर उनकी नौकरियां और प्रमोशन इत्यादि निर्भर था।

    मैंने गुस्सा थूक देने में ही हम सबकी बलाई समझी। मैंने सोचा मेरे पास एक ऐसा शस्त्र था जो मैंने इस्तेमाल नहीं किया था। वह था करुणा शस्त्र। मैंने उसका प्रयोग करना उचित समझा।

    मेरी आँखों में आंसूं आ गये। मैंने कहा, “योग सर, आप क्यों नहीं समझते? इस प्रोग्राम के ऊपर मेरी और हमारी पूरी टीम की करियर निर्भर है। अगर यह प्रोग्राम सफल हो गया तो हमारे सबके करियर बन जायेगे।” यह कहते कहते वाकई में मैं रो पड़ी। उस टाइम मैं कोई ड्रामा नहीं कर रही थी।

    मेरे रोते ही योग सर सकते में आ गये। उन्होंने तब मेरी और देखते हुए पूछा, “अच्छा तो यह बात है! चलो ठीक है। मैं तुम्हारी मदद करूंगा। पर बदले में मुझे क्या मिलेगा?”

    मैं समझ गयी, अब वह बदमाश इंसान अपने आपको बेनकाब कर रहा था। पर मैने सोचा चलो थोड़ा खेल खेल लेते हैं।

    मैंने अपनी पूरी मिठास और विनम्रता पूर्वक आग्रह दिखते हुए कहा, “सब जानते हैं की हमारी कंपनी में आप एक अग्रगण्य काबिल प्रोग्राम डिज़ाइनर हैं। आप हम से काफी सीनियर भी हैं। आपकी मदद के बिना इस प्रोग्राम का सफल होना मुश्किल है। मैं हमारी टीम की तरफ से आपसे बड़ी विनम्रता से बिनती करने आयी हूँ की आप हमारे लिए ही सही, हमारी प्लीज मदद कीजिये, प्लीज!”

    मैंने जान बुझ कर दो बार प्लीज कहा। फिर ना चाहते हुए भी मेरे मुंह से निकल ही गया, “योग सर आपकी मदद के लिए मैं और मेरी टीम सदा सर्वदा आपकी बहुत आभारी रहेंगी। अगर हम आपकी कोई भी मदद कर पाएं तो वह हमारा सौभाग्य होगा।”

    तो योग सर ने मेरी और सहानुभूति से झुक कर कहा, “जब आपके जैसी बड़ी खूबसूरत और सैक्सी लड़की मुझे दो दो बार प्लीज कहे तो मेरा दिल भी तार तार हो जाता है। आखिर इस ठोस और वीर्यवान बदन में भी एक नरम दिल इंसान बसा हुआ है। पर फिर भी यह पूछना गलत नहीं होगा की आखिर यह सब करने के लिए मुझे क्या मिलेगा।”

    मुझे गुस्सा तो बड़ा ही आ रहा था पर मैंने अपने आप पर नियत्रण रखा. मैं जानती थी की गुस्सा दिखाने से काम बनेगा नहीं। जब हम करीब करीब अपने गंतव्य पर पहुँच रहे थे तो बात बिगाड़ने से काम नहीं चलेगा।

    मैंने एक और दाँव खेला। मैं कहा, “योग सर, अगर आपने हमारी मदद की तो मैं आपको वचन देती हूँ की मैं आपकी हमेशा के लिए आभारी रहूंगी और मौका मिला तो मैं आपको आपकी कोई भी तरह की व्यावसायिक मदद जरूर करुँगी। और आपकी मदद का उचित पारितोषिक जरूर दूंगी।”

    मैंने सोचा देखते हैं, योग सर पारितोषिक का क्या मतलब निकालते हैं।

    योग भी तैयार थे। उन्होंने कहा, “मैं नहीं समझता की मुझे आपकी व्यावसायिक मदद की कोई जरुरत होगी। मैं अपने आप में पूरा सक्षम हूँ। पर हाँ और कई तरीकों से तुम मेरी मदद कर सकती हो।”

    मैं समझ गयी यह चोदू, मुझे अपनी टांगों के बिच में हो रहे दर्द को मिटाने की और इशारा कर रहा था। फिर मैं एक बार और अपनी वासना पूर्ण काल्पनिक दुनिया में खोने लगी।

    मैंने सोचा की काश अगर ऐसा हुआ तो मेरी टाँगों के बिच का दर्द भी तो मिट जाएगा। पर दूसरी और मैं इस मुर्ख इंसान पर तरस भी आ रहा था।

    वह चाहते थे की उनकी टाँगों के बिच हो रहे दर्द का इलाज मैं करूँ ताकि वह ऑफिस के काम में बिना टेंशन के आराम से ज्यादा ध्यान दे सके। वाह! वाह! पर जैसे ही मैं उनकी टाँगों के बिच वाले उनके लण्ड के बारे में सोचने लगी की मेरी हालत खराब होने लगी।

    मेरा यह धोखे बाज बदन! मेरी यह बेईमान चूत!! मेरी यह बेबस निप्पलेँ!!! यह बैरन! योगराज से चुदाइ का ख़याल आते ही अपने गाने गाने लगीं! मेरी चूत में से पानी रिसने लगा और निप्पलेँ बरबस फूल गयीं। यह मेरा बदन मुझे चैन से सोचने ही नहीं देता था।

    मैं सोचने लगी यदि मैंने उन की टाँगों के बिच हो रहे दर्द को दूर किया, तो वास्तव में तो मेरी टाँगों के बिच हो रहा दर्द भी तो दूर होगा ! मेरी चूत भी तो उनका तगड़ा लण्ड अपने अंदर लेने के लिए कबसे तड़प रही थी।

    योग अपने छद्म शब्दों से अपनी कामना जाहिर कर रहे थे। मैं उस से गुस्सा भी थी और साथ साथ में मेरे अंदर काम वासना भी भड़क रही थी।

    अगर दुसरा कोई व्यक्ति होता तो मैं उनकी इन लोलुपता भरी बातों का माकूल जवाब देती। पर उस समय मेरे पास उन सारी बातों को सोचने का समय नहीं था। मुझे बस उनसे अपना काम निकलवाना था।

    हाँ, मेरे ह्रदय के अंदर कहीं कोई कोने में जरूर यह प्रश्न बार बार उठ रहा था की “हे प्रिया, कहीं योग से काम करवाने के चक्कर में उसे खुश करने के लिए तू अपना स्वाभिमान खो कर अन्य लड़कियों की तरह योग के सामने अपने घुटने तो नहीं तक देगी और उन से चुदवाने के लिए राजी तो नहीं हो जायेगी?”

    मुझे ऐसा लग रहा था की योग मेरे मन की बात पढ़ लेते थे। उन्होंने कहा, “डार्लिंग, मैं जानता हूँ तुम क्या सोच रही हो। तुम मुझे कहती कुछ हो और सोचती कुछ और हो। तुम सोच रही हो ना की कहीं मैं तुम्हें मदद करने के बहाने ललचा फुसला कर तुम पर जबर दस्ती करके तुम्हें अकेला पाकर तुम्हारा बलात्कार ना कर दूँ? हौसला रखो। मैं तुम्हें चोदना जरूर चाहता हूँ पर जबर दस्ती नहीं। मेरे सशक्त और वीर्यवान शरीर में एक प्यार और करुणा से भरा दिल भी छुपा हुआ है।”

    मैं योग की और विस्मय से देखती रही। बातें करते हुए भी यह अभिमानी पुरुष अपने वीर्यवान बदन का जिक्र करना नहीं चुकता था। वह शायद मुझे अपनी चोदने की क्षमता का जायजा देना चाहते थे। वह मुझे साफ़ साफ़ कह रहे थे की वह मुझे चोदना चाहते थे।

    कमाल है! योग की घृष्टता देख कर मैं मन ही मन दंग रह गयी। मुझे इस इंसान की बेशर्मी और ज़िद पर आश्चर्य हो रहा था; की इतनी नाकामियों के बावजूद वह मेरा पीछा नहीं छोड़ रहे थे।

    पर मैं करती तो क्या करती? मैं उसे उस समय योगराज को कोई सबक सिखाने के मूड में नहीं थी। मैं तो प्यार मोहब्बत से अपना काम निकलवाने के जुगाड़ में थी।

    मैं अपने इस अंतर्मंथन से परेशान हो गयी। मेरे चेहरे पर शायद यह परेशानी योगराज को साफ़ साफ़ नज़र आयी होगी, तो मुझ पर जैसे तरस खाकर योगराज बोले, “ठीक है, मैं सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे लिए, तुम जैसी एक सेक्सी और सुन्दर औरत के लिए, और यह ध्यान में रखते हुए की तुमने मुझे वचन दिया है की तुम मेरे इस अहसान का कर्ज जरूर चुकाओगी, मेरे अत्यंत व्यस्त होने के बावजूद, मैं निजी तौर पर तुम्हारा यह प्रोग्राम जरूर देखूगा।”

    जैसे ही योगराज ने यह शब्द कहे, मेरे पुरे मष्तिष्क ने एक चैन की साँस ली।

    योग ने उस समय भी मेरा मन जैसे पढ़ लिया। वह मुस्कुरा कर बोले, “पर यह काम ऑफिस समय में नहीं हो सकता। क्यों की उसका मतलब होगा अपने काम की उपेक्षा करना और काम चोरी करना। यह काम या तो तुम्हारे या फिर मेरे घर ही हो सकता है। माहौल ऐसा हो की हम दोनों अकेले ही हों और पूर्णतयाः शान्ति हो…

    इसका कारण यह है की मैं जब मैं कोई काम हाथ में लेता हूँ तो मैं उस काम पर फोकस करता हूँ, उस पर पूरा ध्यान देता हूँ। मैं जानता हूँ की तुम्हरा प्रोग्राम अगर घटिया नहीं तो एकदम साधारण सा होगा। उसमें कई त्रुटियाँ होंगीं। मुझे उनको ठीक करना होगा। हालांकि यह तुम्हारा प्रोग्राम है, पर चूँकि अब मैं तुम्हें मदद करने के लिए राजी हो गया हूँ तो मैं तुन्हें बदनामी दिलवाना नहीं चाहता…

    तुम्हारा प्रोग्राम कैसा भी हो मैं उसे सुधारकर तुन्हें पर्याप्त यश दिलवाऊंगा। मेरे अंदाज से तुम्हारा प्रोग्राम देखने में और ठीक करने में मुझे काम से काम बारह या सोलह घंटे का समय तो जरूर चाहिए। तो बताओ फिर तुम्हारे घर में बैठे या मेरे?”

    मैं समझ तो गयी ही थी की योगराज मुझे अकेले में फाँसने के चक्कर में थे और कुछ न कुछ चाल तो चलेंगे ही। वह शायद मुझे अकेले में पाकर मेरा पूरा फायदा उठाना चाहते थे।

    शायद वह सोच रहे थे की मैं अकेली उनका विरोध नहिं कर पाउंगी और वह आसानी से पकड़ कर अगर मैं नहीं मानी तो मुझ पर जबरदस्ती करेंगे।

    पर वह जानते नहीं थे की मैं अलग मिटटी की बनी हुई थी। प्यार से कोई भी मुझसे कुछ भी करवाले। पर अगर किसी ने जबरदस्ती की तो फिर तो मैं महाकाली बन जाती थी और उस की शामत ही आ जाती।

    दूसरी बात यह भी थी की ज्यादा सोचने या घबराने से भी तो काम नहीं चलेगा। कुछ न कुछ रिस्क तो उठाना पडेगा ही।

    खैर मैं भी कोई कम हिम्मत वाली नहीं थी। अगर योगराज ने मुझ पर जबरदस्ती की तो फिर तो उन की मैं ऐसी बैंड बजाऊंगी की वह याद रखेंगे। मैं उन के विरुद्ध शिकायत कर सकती थी या फिर उन पर मुकद्दमा भी दायर कर सकती थी।

    पर मैं यह भी जानती थी की जो योग कह रहे थे वह एकदम सही था। योगराज वह काम ऑफिस में नहीं कर सकते थे। अगर वह अपने फ्री टाइम में मेरा काम कर देते हैं तो कंपनी को कोई आपत्ति नहीं थी। और दूसरे हमें अकेले में शान्ति से बैठना तो पडेगा ही।

    ऐसे काम में फोकस एकदम जरुरी था और उसके लिए एकदम शान्ति और एकांत होना अनिवार्य था। बस मैं उनकी यह बात से खूब गुस्सा थी की प्रोग्राम को देखे बगैर वह कैसे कह सकते हैं की वह घटिया होगा? खैर मुझे योगराज का आईडिया ठीक लगा।

    मैंने कुछ हिचकिचाहट के साथ कहा, “ठीक है। मैं समझ सकती हूँ की आप कह रहें वह सही है। मैं आपका जाती रूप से शुक्रिया अदा करती हूँ की आप मुझे और मेरी टीम को मदद करने के लिए तैयार हुए…

    हमने हमारे यह प्रोग्राम का काफी सख्ती से परिक्ष्ण किया है। फिर भी आप जैसे सीनियर प्रोग्रामर की राय हमारे लिए बहुत मायने रखती है। चूँकि आप ऑफिस के नजदीक रहते हैं इस लिए अगर आपको एतराज ना हो तो आपके घर में ही यह काम करें तो बेहतर है। तो फिर कब शुरू करें?”

    योगराज मेरी बात सुनकर मुस्कराये। उनकी मुस्कान मुझे अच्छी लगी। उस मुस्कान में कोई कड़वाहट नहीं थी।

    मुझे योग से इतनी ज्यादा पूर्व ग्रह होते हुए भी ऐसा लगा की वह मुस्कान में कोई कटाक्ष या कटुता नहीं थी। पर फिर मेरे मन में शक उठा की एक माहिर अभिनेता की तरह उनकी मुस्कान कहीं उनकी लोलुपता और कपटता को छुपानी उनकी कोशिश तो नहीं थी?

    हालांकि मैं खुश थी की वह हमें मदद करने के लिए राजी हो गए थे, पर उस से योगराज के प्रति उन का महिलाओं की व्यावसायिक कार्यदक्षता के प्रति जो हीन भाव था, उसके कारण मेरे जहन में कूट कूट कर भरा जो द्वेष और घृणा का भाव था वह कम नहीं हुआ था।

    योग के मनन में आखिर क्या है? वो तो अगले एपिसोड में ही पता चलेगा!

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